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त्वोता॑स॒स्त्वा यु॒जाप्सु सूर्ये॑ म॒हद्धन॑म् । जये॑म पृ॒त्सु व॑ज्रिवः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvotāsas tvā yujāpsu sūrye mahad dhanam | jayema pṛtsu vajrivaḥ ||

पद पाठ

त्वाऽऊ॑तासः । त्वा । यु॒जा । अ॒प्ऽसु । सूर्ये॑ । म॒हत् । धन॑म् । जये॑म । पृ॒त्ऽसु । व॒ज्रि॒ऽवः॒ ॥ ८.६८.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:68» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे विवेकी पुरुषो ! मैं (इन्द्रम्) उस परमैश्वर्य्यशाली ईश्वर की स्तुति प्रार्थना और गान करता हूँ, तुम भी करो, जो (परोमात्रम्) अतिशय पर है अर्थात् जो परिमित है तथापि (ऋचीसमम्) ऋचा के सम है। भाव यह है−यद्यपि वह परमात्मा अपरिछिन्न है, तथापि हम मनुष्य उसकी स्तुति प्रार्थना करते हैं, अतः मानो वह ऋचा के बराबर है। ऋचा जहाँ तक पहुँचती है, वहाँ तक है। पुनः (उग्रम्) महाबलिष्ठ और भयङ्कर है, (सुराधसम्) सुशोभन धनसम्पन्न है और (वसूनाम्+चित्) धनों वासों का (ईशानम्) शासक भी है ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अनन्त-अनन्त है, तथापि जीवों पर दया करनेवाला भी है, अतः वह उपास्य है ॥६॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - इन्द्रं हुवे इति शेषः। कीदृशम्=परोमात्रम्=अतिशयेन परम्=सर्वेभ्यः परम् अपरिछिन्नम्=तथापि। ऋचीसमम्। ऋग्भिः समम्=स्तुत्यापरिछिन्नम्। पुनः। उग्रम्= महाबलिष्ठम्। सुराधसम्=सर्वधनसम्पन्नम्। वसूनां= धनानां वासानां च। ईशानं+चित्=शासकमपि ॥६॥